वन विभाग भी ले रहा ट्रेनिंग वन विभाग के विद्यालय में शुरू हुई बड़ी मात्रा में मशरूम की खेती
छपारा :- कहते हैं कि जहां लगन होती हैं वहां मंजिलें आसान हो जाती है। ऐसी ही एक मिसाल छपारा जनपद क्षेत्र के छोटे से गांव बड़पानी के रहने वाले शिवांश सिंह ठाकुर ने सिद्ध करके दिखाया है।शिवांश के पिता रामदयाल सिंह ठाकुर चमारी क्षेत्र के जाने माने किसान हैं उन्होंने भी अपने पिता की तरह कृषि क्षेत्र में कुछ कुछ अलग करने की ठानी और उसके सपने अब धीरे-धीरे साकार भी हो रहे हैं, ज्ञात हो कि इंदौर स्थित होल्कर कॉलेज में बीएससी एग्रीकल्चर के अंतिम वर्ष में अध्ययन कर रहे इस होनहार स्टूडेंट ने पढ़ाई के दौरान मशरूम की खेती के विषय में जाना साथ ही किताबी ज्ञान का जमीनी स्तर पर प्रयोग करते हुए अपने गांव में पुराने कच्चे मकान में 10 बाई 10 के कमरे में इसकी शुरुआत की आगे जानकारी देते हुए शिवांश ने बताया कि इसी वर्ष मई 2024 में मशरूम की खेती की शुरुआत की जिसमें 10 बाय 10 के कमरे में 100 बैग बनाए गए थे लगभग एक बैग में 70 रुपए की लागत आई जिसमें प्रति बैग ढाई किलो का उत्पादन लिया गया। इस तरह सौ बेग में 250 किलोग्राम मशरूम का उत्पादन हुआ वही साथ ही यह फसल लगातार दो से ढाई महीने निकलती हैं।शुरुआत में आसपास के क्षेत्र में इसका बाजार मूल्य नहीं मिलने से इसको विक्रय करने में दिक्कतो का सामना करना पड़ा फिर धीरे-धीरे सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों में मशरूम के प्रति जागरूक किया की किस तरह इसके सेवन करने से यह मानव जीवन के लिए कितना उपयोगी साबित होता है उसको देखते हुए सिवनी,छपारा,लखनादौन और जबलपुर में उक्त मशरूम300 रुपए किलो के हिसाब से बाजार में विक्रय किया गया। साथ ही शिवांश द्वारा बताया गया कि लगभग 100 बैग तैयार करने में उनको दस हजार रुपए के आसपास की लागत आई थी। वही जब शिवांश से मशरूम की खेती के विषय में विस्तृत चर्चा की गई तो उन्होंने बताया कि सर्वप्रथम 15 दिन खाद तैयार करना पड़ता है उसके बाद उन्होंने इंदौर से लाए बीज का इसमें रोपण किया फिर अगले 15 दिन लगातार पानी दिया जाता है इस तरह 45 दिनों में मशरूम की निकालना प्रारंभ हो जाता है जो कि लगातार प्रतिदिन दो से ढाई महीने इसका उत्पादन जारी रहता हैं। साथ ही इसका उत्पादन में तापमान का सबसे बड़ा खेल होता है कमरे के तापमान को बनाए रखने के लिए एसी का भी उपयोग करना पड़ता हैं। वहीं मई से जुलाई महीने तक फसल लेने के बाद दूसरी बार अक्टूबर, नवंबर से वर्तमान समय तक लगातार इसका उत्पादन जारी है जो अपने अंतिम पड़ाव में हैं।वहीं इस खेती को देखने जब लखनादौन वन विभाग के एसडीओ शिवांश के गांव पहुंचे और वह भी बहुत प्रभावित हुए तो उन्होंने ने भी इनके मार्गदर्शन में इस मशरूम की खेती की शुरुआत की जिसमें वन विद्यालय लखनादौन में 11 सौ बैग ओयस्टर मशरूम लगवाए हैं जिससे प्रतिदिन 40 किलो की पैदावार हो रही है। छात्र ने यह भी बताया कि प्रोडक्ट को बेचने के लिए शुरूआत में समस्या आई लेकिन सोशल मीडिया का सहारा लेकर अब उसे इस खेती से निकलने वाली पैदावार के अच्छे दाम मिल रहे हैं। बहरहाल छपारा जनपद के छोटे से गांव में मशरूम की खेती करने वाले शिवांश ने परंपरागत खेती से हट कर अलग करने का जोखिम उठाया था जिसमें उनके परिजनों ने पूरा सहयोग दिया जिससे धीरे ही सही किंतु उनको इसमें सफलता मिली साथ ही युवाओ के प्रेरणा स्त्रोत भी बन रहे है।





