बाबली पंचायत में आखिर चल क्या रहा है?
जनपद पंचायत लखनादौन के सहायक सचिव देवी लाल उइके पर गंभीर आरोप, सरपंच-सचिव तक सवालों की आँच प्रशासन अब भी मौन
सिवनी।
सिवनी जिले के जनपद पंचायत लखनादौन के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत बाबली इन दिनों चर्चा में नहीं, बल्कि सीधे सवालों के केंद्र में बैठी हुई है। और सवाल भी ऐसे कि जिला प्रशासन की नींद उड़ा दें, अगर वह नींद में हो, तो। ग्रामीणों ने पंचायत की कार्यप्रणाली को लेकर जो आरोप उठाए हैं, वे किसी छोटे-मोटे अनियमितता वाले मामले के नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम को हिलाने वाले मसलों के हैं। जहाँ मजदूर नहीं, लेकिन मजदूरी है, जहाँ कार्य नहीं, लेकिन उपस्थिति है, जहाँ पंचायत है, लेकिन पारदर्शिता नहीं, ऐसे हालात किसी भी शासन व्यवस्था पर उंगली नहीं, सीधा हाथ रखते हैं। ग्राम पंचायत बाबली की कहानी आज केवल एक पंचायत की कहानी नहीं है, बल्कि यह बताती है कि कैसे एक छोटा-सा कागज़, जिसे मास्टररोल कहा जाता है, पूरे राजस्व, पूरी व्यवस्था और पूरे तंत्र की पारदर्शिता को ध्वस्त कर सकता है।
ग्रामीणों की आवाज़, मास्टररोल नहीं, यह मनमानी-रोल है
ग्राम पंचायत बाबली में लोगों का दर्द स्पष्ट है। ग्रामीणों की जुबान पर सिर्फ एक ही पंक्ति, काम कहीं नहीं, हाजिरी हर जगह, ग्रामीणों की बातों का सार इतना सरल है कि किसी भी सामान्य व्यक्ति को समझ आ जाएगा कि तस्वीर काली है, लेकिन प्रशासन को यह तस्वीर अभी तक शायद स्लेटी ही दिखाई दे रही है। ग्रामीणों के आरोप, मास्टररोल में दर्ज कई नाम ऐसे हैं जिनके चेहरे कार्यस्थल पर किसी ने कभी नहीं देखे, उपस्थिति लगातार 100% जबकि वास्तविक कार्यस्थल पर श्रमिकों की संख्या 0–3 तक ही दिखती है, मजदूरी भुगतान समय पर, लगातार और संदिग्ध रूप से समान मानो किसी मशीन से कॉपी-पेस्ट कर दी गई हो, मोबाइल-एप आधारित उपस्थिति (जियो-लोकेशन) में भारी विसंगतियाँ, लेकिन कोई जाँच नहीं, ग्रामीणों की शिकायतें सुनने वाला कोई नहीं, पंचायत में जवाबदार लोग उपलब्ध ही नहीं रहते, ग्रामीणों में यह बात तेजी से फैल चुकी है कि पंचायत में कागज़ों पर काम करवाया जा रहा है। मजदूरों के नाम लिखे जा रहे हैं, मजदूरी निकासी की जा रही है, लेकिन कोई भी नहीं जानता कि काम असल में हुआ भी या नहीं, नीलेश झारिया और सुकवल कुशराम के नाम पर उठते सवाल, ग्राम पंचायत बाबली के संदिग्ध मास्टररोल में दो नाम बहुत तेजी से चर्चा में हैं, नीलेश झारिया, ग्रामीणों के अनुसार, यह युवक ग्राम रहलोन कला में अतिथि शिक्षक के रूप में पढ़ाता है, पर मास्टररोल में उपस्थिति नियमित, सतत और संदिग्ध रूप से 100% क्या कोई व्यक्ति एक साथ दो जगह दैनिक उपस्थिति दर्ज करा सकता है? कानून कहता है—नहीं, लेकिन पंचायत के दस्तावेज़ कहते हैं—हाँ। तो फिर झूठ कौन बोल रहा है? कानून या कागज़? वही दूसरी ओर सुकवाल कुशराम, ग्रामीणों के अनुसार, यह व्यक्ति जुगरई छात्रावास में चपरासी के पद पर नियुक्त है, पर बाबली पंचायत के मास्टररोल में इनकी उपस्थिति लगातार देखी जा रही है, चौंकाने वाली बात यह है कि मजदूरी के आंकड़े भी एक समान अंतराल पर दर्ज हैं, जो किसी भी प्राकृतिक कार्य हाजिरी पैटर्न से मेल नहीं खाते। ग्रामीणों का कटाक्ष बिल्कुल स्पष्ट है, इन लोगों के नाम पंचायत में हैं, लेकिन इनकी परछाईं भी कार्यस्थल पर नहीं दिखती। सहायक सचिव क्या पंचायत का पूरा कंट्रोल एक ही व्यक्ति के हाथ? ग्राम पंचायत बाबली में ग्रामीणों द्वारा उठाया गया सबसे बड़ा आरोप है, साहब, पंचायत में सब कुछ एक ही व्यक्ति चला रहा है, बाकी सब सिर्फ नाम के सहायक सचिव के विरुद्ध ग्रामीणों के आरोप कुछ इस प्रकार हैं, मास्टररोल की तैयारी अकेले करता है, कौन मजदूर रखा जाएगा, कौन नहीं निर्णय अकेले जॉब कार्ड किसका सक्रिय होगा निर्णय अकेले उपस्थिति किसकी दर्ज होगी, निर्णय अकेले ऑनलाइन अटेंडेंस, मोबाइल लोकेशन, फील्ड-वेरिफिकेशन, कहीं पालन नहीं, ग्रामीणों का कहना है, सरकारी कार्य इतना भी निजी नहीं होता कि पंचायत एक व्यक्ति की व्यक्तिगत दुकान बन जाए। सबसे गंभीर आरोप यह है कि
सहायक सचिव फील्ड में लगभग दिखाई ही नहीं देता, लेकिन कागजों पर सब कुछ व्यवस्थित चलता रहता है।
सरपंच और सचिव मौन किसलिए? या फिर साझेदारी?
ग्राम पंचायत में सहायक सचिव के ऊपर सवाल उठना एक बात है, लेकिन ग्रामीणों का मानना है कि यह खेल अकेले संभव नहीं। सरपंच और सचिव की भूमिका पर भी ग्रामीण सीधे प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है, मौन भी कभी-कभी अपराध से बड़ा अपराध होता है। अगर ये सब मनमानी हो रही है, तो सरपंच कहाँ है? सचिव का काम निगरानी है, तो क्या वे निगरानी छोड़ चुके हैं? क्या तीनों के बीच कोई अघोषित सामंजस्य है? क्या भुगतान और उपस्थिति के मामले में जिम्मेदार लोग जानबूझकर चुप हैं? ग्राम पंचायत बाबली में पूरी प्रक्रिया ऐसी दिख रही है जैसे काग़ज़ों का खेल दिल्ली तक पहुँच जाए, लेकिन काम गाँव की सीमा से बाहर न निकले। मास्टररोल की विसंगतियाँ, जो दस्तावेज़ खुद गवाही दे रहे हैं उपलब्ध रिपोर्टों और ग्रामीणों के अवलोकन के आधार पर कई बिंदु सामने आते हैं, एक ही परिवार के कई सदस्य सभी 100% उपस्थिति के साथ यह सामान्य स्थिति नहीं है, वास्तविक मजदूरी में उपस्थिति हमेशा अनियमित होती है। लेकिन यहां सब कॉपी-पेस्ट की तरह दिखता है। मोबाइल-अटेंडेंस पीली पंक्तियों में दर्ज और संदेहपूर्ण, मोबाइल लोकेशन सत्यापन सबसे जरूरी चरण है। लेकिन यहाँ इन पंक्तियों की संख्या इतनी अधिक है कि यह सीधे संकेत देता है कि नीति का पालन नहीं किया गया, भुगतान दिनों का पैटर्न असामान्य रूप से समान, प्राकृतिक मजदूरी भुगतान कभी भी इतने नियमित नहीं होते। यहाँ का आंकड़ा मशीन द्वारा भरा हुआ प्रतीत होता है, कार्यस्थल का निरीक्षण, ग्रामीणों का आरोप कि जगह पर कोई दिखा ही नहीं, पूरा मामला संदिग्ध से सीधे गंभीर श्रेणी में पहुँचा दिया है। कानूनी प्रावधान और पंचायत का सीधा उल्लंघन, मनरेगा और पंचायत विभाग के नियम स्पष्ट रूप से कहते हैं, वास्तविक कार्य स्थल पर उपस्थिति अनिवार्य, मोबाइल एप से तत्काल उपस्थिति दर्ज करना अनिवार्य, जॉब कार्ड का दुरुपयोग गंभीर अपराध, गलत भुगतान पर आपराधिक कार्रवाई अनिवार्य, भौतिक निरीक्षण अनिवार्य, यदि ग्रामीणों के आरोप सही माने जाएँ तो यह मामला सिर्फ अनियमितता का नहीं बल्कि कानून के स्पष्ट उल्लंघन का है। यह सीधा मामला बनता है, विभागीय जाँच, वित्तीय अनियमितता, दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत कार्रवाई, पद दुरुपयोग, जालसाजी/फर्जीवाड़ा, ग्रामीणों की माँग, कार्रवाई नहीं, वास्तविक कार्रवाई चाहिए, ग्रामीण अब थक चुके हैं। वे किसी सांकेतिक जाँच से संतुष्ट नहीं होंगे। मास्टररोल की लाइन-बाई-लाइन फील्ड जाँच, मोबाइल अटेंडेंस की जियो-लोकेशन ट्रैकिंग, भुगतान के बैंक खातों का सार्वजनिक सत्यापन, उपस्थिति बनाम वास्तविक कार्यस्थल की फोटो जाँच, जिम्मेदार अधिकारियों पर कड़ी विभागीय कार्रवाई, ग्रामीणों का एक वाक्य सब कुछ कह देता है, काम नहीं तो मजदूरी कैसे? यह तो सीधी लूट है साहब। जिला प्रशासन की चुप्पी सबसे बड़ा सवाल, पूरे मामले में सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि जिला प्रशासन और जनपद पंचायत लखनादौन अब भी चुप क्यों? क्या जानकारी नहीं? क्या शिकायतें नहीं पहुँचीं? या फिर शिकायतें पहुँचने के बावजूद भी कोई कार्रवाई नहीं करना चाह रहा? जब दस्तावेज़ सवाल उठाएँ, ग्रामीण खुलकर बोलें, नाम संदिग्ध दिखें, कार्यस्थल खाली मिले, तो प्रशासन की चुप्पी भी संदेहास्पद हो जाती है, अगर प्रशासन चाहे तो यह मामला 24 घंटे में साफ हो सकता है, लेकिन चाहे कौन? बाबली पंचायत का मॉडल कागज़ का विकास, जमीन का विनाश, ग्राम पंचायत बाबली की स्थितियाँ प्रशासन और शासन दोनों के लिए एक चेतावनी हैं। मास्टररोल जैसी एक साधारण-सी फाइल किस तरह पूरे सिस्टम में सड़ांध पैदा कर सकती है, इसका जीता-जागता उदाहरण है यह पंचायत, यदि तत्काल, वास्तविक और कठोर जाँच नहीं की गई, तो यह मामला बड़ा घोटाला बन जाएगा, पंचायत व्यवस्था पर विश्वास गिर जाएगा, ग्रामीणों और शासन के बीच की दूरी बढ़ जाएगी, और दोषी लोगों को संरक्षण मिलने का खतरा और बढ़ जाएगा। ग्रामीणों की बातें तेज, साहब, कागज़ पर विकास दिखाने वालों ने गाँव को मजाक बना दिया है। हमें कागज़ नहीं, काम चाहिए। जाँच चाहिए, और दिखावटी नहीं, असली वाली।





