बाबली पंचायत जहाँ कागज़ बोलता है, काम चुप रहता है,मनरेगा के नाम पर जो दस्तावेज़ बरसों से भरते आ रहे.. सहायक सचिव देवीलाल उइके पर लगा प्रश्न
सिवनी- जनपद पंचायत लखनादौन की ग्राम पंचायत बाबली में विकास की कहानी अब गाँव की मिट्टी में नहीं, बल्कि कागज़ों की धूल में मिल गई है। वर्षों से ग्रामीणों की शिकायतें, आवेदन, संवाद और आग्रह सब कुछ या तो फ़ाइलों के नीचे कुचलते रहे, या फिर वही घिसा-पिटा जवाब मिलता रहा जांच होगी पर सवाल बहुत सीधा है, जांच कब होगी? और होगी भी या नहीं? या फिर बाबली में विकास सिर्फ़ उस फाइल का नाम है जिसमें कागज़ों पर बना काम, जमीन पर सिर्फ़ हवा की तरह घूमता है?
बाबली का मास्टररोल यह मनरेगा नहीं, मनमानी-रोल का उदाहरण लगता है, बाबली में मनरेगा के नाम पर जो दस्तावेज़ बरसों से भरते आ रहे हैं, उन्हें देखकर किसी भी समझदार व्यक्ति के मन में सीधा सवाल उठता है, आखिर यह मास्टररोल किसके लिए बनता है, मजदूरों के लिए या फाइलों के लिए? मजदूर बताते हैं कि उन्हें समय पर काम नहीं मिलता, फाइलें बताती हैं कि काम समय पर पूरा हो गया, गांव कहता है कि काम दिखता ही नहीं, और भुगतान तो ठीक समय पर निकलता ही है, यह अजीब तिकड़म किस दिशा में संकेत करती है, यह समझना कठिन नहीं, मनरेगा जैसी योजना, जिसका उद्देश्य ग्रामीणों को रोजगार देना है, बाबली में आते-आते जैसे किसी खास कागज़ी चक्र में फंस जाती है।
भुगतान पूरा, काम अधूरा, क्या विकास सिर्फ़ बिलों में होता है?
बाबली पंचायत की सबसे बड़ी विडंबना यही है, काम आधा, भुगतान पूरा ग्राम पंचायत में कई निर्माण-कार्य, पुराने रिकॉर्ड, व्यय रजिस्टर और बिलों की प्रविष्टियाँ यह सवाल उठाने पर मजबूर करती हैं कि क्या यहाँ विकास कागज़ों पर पूरा होता है और जमीन पर अधूरा छोड़ दिया जाता है? बाबली के ग्रामीणों का कहना है कि काम का अस्तित्व दिखता नहीं, गुणवत्ता पर सवाल उठते हैं, और प्रशासन को शिकायतें करने पर वही पुराना जवाब मिलता है, उच्च स्तर पर भेज दिया है। लेकिन यह उच्च स्तर आखिर कहाँ है? क्या वह स्तर इतना ऊँचा है कि उससे नीचे गाँव की आवाज़ सुनाई ही नहीं देती?
रजिस्टर, बिल, भुगतान और रिकॉर्ड यह कागज़ी पन्ने ही सबसे बड़ा सवाल हैं..
बाबली पंचायत की प्रशासनिक फाइलें खुद अपने भीतर एक पूरी कहानी छुपाए बैठी हैं, एक तरफ रजिस्टरों में लगातार एंट्रियाँ, दूसरी तरफ जमीन पर जड़ काम यह अंतर सिर्फ़ अनियमितता नहीं, बल्कि प्रशासन की उदासीनता की ऊँची दीवारें दिखाता है, आम नागरिक पूछता है, अगर काम पूरा हुआ है, तो दिखता क्यों नहीं? बिल बने हैं तो निर्माण कहाँ है? यदि श्रमिक लगे, तो श्रमिकों की सूची और हस्ताक्षर कहाँ हैं? और यदि सब कुछ नियम अनुसार है, तो जांच से डर कहाँ से आता है? प्रशासन की ओर से आज तक इन सवालों का जवाब नहीं मिला। लोग साफ़ कहते हैं, हम ठगे नहीं जाएँगे। हमारी मेहनत, हमारा हक, हमारा गाँव हम खुद सवालों के घेरे में खड़े नहीं होंगे सवाल उन पर उठेंगे जो जिम्मेदार हैं, जब जनता प्रशासन से निराश हो जाती है, तब वह अपनी जमीन की सच्चाई खुद दिखाती है, बाबली आज यही कर रही है।
प्रशासन की चुप्पी, क्या यह अनदेखी है या उदासीनता?
सबसे बड़ी चिंता यह नहीं कि बाबली में अनियमितताओं की आशंका सबसे बड़ी चिंता यह है, फिर भी प्रशासन चुप क्यों है? क्या शिकायतें पर्याप्त नहीं हैं? क्या दस्तावेज़ों में विसंगतियाँ स्पष्ट नहीं हैं? क्या ग्रामीणों की आवाज़ को गंभीरता मिलनी चाहिए या नहीं? क्या पंचायतों की जांच सिर्फ़ फाइलों तक सीमित रहनी चाहिए? और सबसे बड़ा सवाल, क्या प्रशासन का काम सिर्फ़ बजट जारी करना है, या यह देखना भी है कि पैसा गाँव तक पहुँच भी रहा या नहीं?
बाबली पंचायत में नियम पुस्तिका सिर्फ़ दीवार पर टंगी है, लागू कहीं नहीं..
अगर नियमों का पालन हो रहा होता, तो मास्टररोल की सत्यापन प्रक्रिया मजबूत होती, मजदूरों की उपस्थिति स्पष्ट होती, भुगतान का रिकॉर्ड पारदर्शी होता, और ग्रामीणों को योजनाओं की जानकारी मिलती। लेकिन बाबली में स्थिति उलट है, नियम मौजूद हैं, पर उन नियमों का पालन किस दिशा में हो रहा है, यह खुद शासन भी शायद नहीं जानता।
जांच की माँग, ग्रामीण कहते हैं, जांच हो, पूरी हो, ज़मीनी हो..
ग्रामीण सिर्फ़ कागज़ी जांच नहीं चलेगी, जमीन पर जांच हो, हर काम की साइट विज़िट हो, रजिस्टर और वास्तविक काम का मिलान हो, और जहां गड़बड़ी मिले, वहां कार्रवाई भी हो, यह माँग किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं, यह माँग विकास की मर्यादा बचाने की है। बाबली को अब पारदर्शिता चाहिए, आश्वासन नहीं, ग्राम पंचायत बाबली की कहानी अब सिर्फ़ ग्रामीण विकास की बात नहीं रही, यह कहानी जवाबदेही, पारदर्शिता और प्रशासनिक ईमानदारी की परीक्षा बन चुकी है। काम जितना हुआ है, दिखना भी चाहिए, पैसा जितना खर्च हुआ है, हिसाब भी दिखना चाहिए, और विकास कागज़ों पर नहीं, जमीन पर होना चाहिए, क्योंकि किसी भी पंचायत में विकास का सबसे बड़ा दुश्मन भ्रष्टाचार नहीं, विकास का सबसे बड़ा दुश्मन है, प्रशासन की चुप्पी।





