एस.के. ट्रेडर्स धनककड़ी ग्राम पंचायतों में फर्जी बिल सिंडिकेट का केंद्र?

लखनादौन की पंचायतो, मुरम के नाम पर घोटाला नहीं, प्रशासनिक ...

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लखनादौन की पंचायतो, मुरम के नाम पर घोटाला नहीं, प्रशासनिक ढांचे को खोखला करने की संगठित व्यवस्था..

सिवनी- नियमों की किताब शासन के दफ्तरों में सजी है, लेकिन लखनादौन में जिम्मेदार अधिकारियों की आँखें अब भी मुंदी पड़ी हैं, ग्राम पंचायतों में मुरम परिवहन और भुगतान का जो खेल सामने आया है, उसने यह साफ कर दिया है कि यहाँ नियमों से नहीं, सेटिंग से शासन चलता है।

नियम एक तरफ, सेटिंग दूसरी तरफ और पंचायतों का पूरा तंत्र उसी धुन पर नाचता हुआ..

खनिज नियम 1996 साफ-साफ कहता है कि बिना अनुमति खनिज परिवहन अपराध है, लेकिन लखनादौन क्षेत्र की पंचायतों में जो चल रहा है, वह किसी अपराध की आहट नहीं बल्कि खुलेआम बजते अपराध के ढोल की गूंज है, ऐसा प्रतीत होता है कि पंचायतें अपनी तरफ से एक नई गाइडलाइन बना चुकी हैं, न अनुमति चाहिए, न रॉयल्टी, बस सेटिंग चाहिए और बिल पास होते जाएँ।

फर्जी बिलों की बाढ़ लेकिन अधिकारी सूखे कुएँ की तरह खामोश..

ग्रामीणों की बातों में जो तीखापन है, वह प्रशासन की चुप्पी को और ज्यादा उभार देता है, उनका कहना है, पंचायतों में मुरम आई नहीं, लेकिन किसी की जेब में नोटों की मुरम ज़रूर भर गई। सूत्र बताते हैं कि स्थिति इतनी बेकाबू है कि न काम हुआ, न मुरम पहुँची, न परिवहन हुआ, लेकिन कागज़ी बिल ऐसे बने मानो गाँवों से राजधानी तक सड़कें नहीं, सोने की परत चढ़ा दी गई हों। सूत्रों का बड़ा आरोप है कि एस.के. ट्रेडर्स धनककड़ी नाम की फर्म ने ग्राम पंचायतों में जाल बिछाकर करोड़ों की कागज़ी मुरम का खेल रचा, न शासन की अनुमति, न खनिज रॉयल्टी, न परिवहन की वैधता और न ही कहीं वास्तविक मुरम का अता-पता, इसके बावजूद पंचायत सचिवों और कर्मियों ने बिलों को ऐसे पास किया जैसे यह कोई निजी ठेका हो और सरकारी पैसा उनकी बपौती? ग्रामीणों का आरोप है, एस.के. ट्रेडर्स बिल बढ़ाता है, पंचायतें पास करती हैं, और अधिकारी आँखें बंद रखते हैं, यह सवाल सीधा अधिकारियों पर खड़ा होता है, और चुभता है, अधिकारियों की मौन भूमिका क्या यह सिर्फ लापरवाही है या मौन सहमति? निरीक्षण की शक्ति भी उनके पास, जांच की जिम्मेदारी भी उनके पास, और पारदर्शिता का दायित्व भी उन्हीं के सिर फिर भी हालात यह हैं कि रजिस्टरों में बिलों का अम्बार है, जमीन पर कार्य का नामोनिशान नहीं, लेकिन अधिकारी एक शब्द बोलने को तैयार नहीं, ग्रामीणों का आरोप है, जब अधिकारी आँखें मूँद लेते हैं, तब घोटालेबाजों को पर लग जाते हैं, यह चुप्पी ही सबसे बड़ा सवाल है, और सबसे बड़ा संकेत भी कागज़ी विकास का अट्टहास, जमीन पर कंकड़ नहीं, फाइलों में डंपर-दर-डंपर और टैक्टर पर टैक्टर मुरम कई पंचायतों में हालत यह है कि एक इंच काम नहीं, लेकिन फाइलों में विकास ऐसे चढ़ा हुआ है जैसे कोई त्योहार मनाया गया हो, कागज़ी रसीदें, नकली परिवहन, दबा हुआ राजस्व, और चोरी हुई रॉयल्टी सब कुछ फाइलों में सुंदर ढंग से सजा हुआ है, क्योंकि इन्हीं फाइलों पर कार्य पूर्ण की मुहर लगाने वाले अधिकारी सब जानते हुए भी अनजान बने बैठे हैं, यह सवाल शासन से टकराता है, क्या प्रशासन को विकास सिर्फ कागज़ में दिखता है? या वही कागज़ किसी को बचाने की ढाल बन जाते हैं?

अब करोड़ों का सवाल, पर जवाब देने वाला कोई नहीं..

ग्रामीणों के सवाल बिल्कुल सीधी रेखा में खड़े हैं, बिना अनुमति मुरम परिवहन किसकी स्वीकृति से हुआ? रॉयल्टी जमा क्यों नहीं कराई गई? पंचायतों ने फर्जी बिलों का भुगतान किस नियम के तहत किया? इस पूरे खेल में पंचायत सचिव अकेले थे या कोई बड़े अधिकारी भी सुरक्षा कवच बने हुए थे? और सबसे बड़ा जांच अब तक क्यों ठंडी पड़ी है? शासन जवाब देने से बच रहा है, और यही बचाव सबसे ज्यादा संदेह पैदा करता है। ग्रामीण लोग अब सीधे शब्दों में कह रहे हैं, अगर जांच नहीं हुई, तो मान लिया जाएगा कि अधिकारी भी इस खेल के हिस्सेदार हैं, पूरे भुगतान और परिवहन प्रक्रिया की कठोर जांच, संबंधित सचिवों और कर्मचारियों पर जिम्मेदारी तय हो, रॉयल्टी, अनुमति और परिवहन संबंधी दस्तावेज सार्वजनिक किए जाएँ, शासन को हुए नुकसान की वसूली, और उन अधिकारियों पर भी कार्रवाई जो फाइलों को जानबूझकर ठंडा रखते रहे, प्रश्न क्या गाइडलाइन सिर्फ किताब में रहेंगी, या उन्हें लागू करने का साहस भी दिखेगा? लखनादौन की पंचायतों में जो कुछ हो रहा है, वह केवल एक घोटाला नहीं यह उस मानसिकता का पर्दाफाश है जिसमें नियम कमजोर पड़ जाते हैं, और सेटिंग सबसे बड़ा कानून बन जाती है, अब निर्णय शासन को करना है, नियम चलेंगे? या नियमों को तोड़ने वाले ही शासन पर हावी रहेंगे?

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