पूर्व की शिकायत की लीपापोती, गंभीर अनियमितताओं पर कार्रवाई न होने की स्थिति, प्रशासनिक निष्क्रियता..
एस.के. वेयरहाउस कहानी अनियमितताओं की मोटी फाइलें दफ्तरों में दबी, मगर जिला प्रशासन को फिर भी दिखाई पड़ रहा है सबकुछ सामान्य..
क्या जिले के अधिकारी पूर्व की शिकायतों से अंधे हैं, या फिर किसी की संरक्षा का कवच इतना कठोर है कि शिकायतें भी उस पर पड़कर टूट जाती हैं?
सिवनी।
सिवनी जिले में सरकारी कार्यप्रणाली पर इससे बड़ा प्रश्नचिन्ह और क्या होगा कि, जिस एस.के वेयरहाउस कहानी पर किसानों की दर्जनों शिकायतें, सीसीटीवी फुटेज के उल्लेख, सर्वेयर, प्रभारी की कथित वसूली और खरीदी में भारी गड़बड़ियों की अनगिनत पंक्तियाँ दर्ज हों, उसी केंद्र को दोबारा से धान खरीदी केंद्र घोषित कर दिया गया क्या? क्या जिले के अधिकारी वास्तव में शिकायत पढ़ते भी हैं? या फिर फाइलें सिर्फ बंद करने के लिए खोली जाती हैं, समाधान के लिए नहीं?
शासन के नियम स्पष्ट, लेकिन कार्रवाई शून्य..
MPWLC, नागरिक आपूर्ति निगम, सहकारिता विभाग, तीनों की संयुक्त जिम्मेदारी, गुणवत्ता परीक्षण, तुलाई, भुगतान, वेयरहाउसिंग और सीसीटीवी की सुरक्षा इन सभी की प्राथमिक जवाबदेही है।
गाइडलाइन के अनुसार..
खरीदी स्थल पर गड़बड़ी, दबाव, अवैध वसूली, गुणवत्ता से समझौता पाए जाने पर संबंधित, प्रबंधक, खरीदी प्रभारी, सर्वेयर, कंप्यूटर ऑपरेटर एवं समिति
पर FIR + निलंबन + ब्लैकलिस्टिंग अनिवार्य है, लेकिन यहाँ उल्टा हो रहा है, शिकायतकर्ता पर ही मनगढ़ंत का ठप्पा लगाकर शिकायत बंद कर दिया गया। शिकायत दर्ज 15/04/2025, किसानों से वसूली और दबाव, सीसीटीवी फुटेज में अनियमितताओं की बात, तुलाई में पक्षपात, गुणवत्ता परीक्षण में हेराफेरी सब स्पष्ट लिखित में दर्ज?, जांच के नाम पर 7 महीने का खेल अधिकारी बदलते रहे, रिपीटेड जवाब फुटेज देखने से असमर्थता, शिकायतकर्ता का मोबाइल स्विच ऑफ बता देना और अंत में वही पुराना फॉर्मूला, अनियमितता नहीं मिली, शिकायत बंद की जाती है।
सबसे बड़ा सवाल..
जब सीसीटीवी फुटेज 15 दिन बाद उपलब्ध ही नहीं होती, तो फिर वेयरहाउस प्रबंधन ने फुटेज सुरक्षित क्यों नहीं रखी? क्या यह गाइडलाइन का खुला उल्लंघन नहीं? क्या यह साक्ष्य नष्ट करने की श्रेणी में नहीं आता? प्रशासन से प्रश्न, जब शिकायत पुनर्मूल्यांकन में अमान्य पाई गई थी तो दोबारा वही निराकरण कैसे स्वीकार हुआ? यह सीधा-सीधा जांच से बचाने का खेल नहीं तो क्या है? जब किसानों ने स्पष्ट आरोप लगाए थे कि, पैसे दो तभी तुलाई, गुणवत्ता परीक्षण बनावटी, सर्वेयर और प्रभारी सेटिंग में काम कर रहे, तो इन आरोपों की एफआईआर क्यों नहीं हुई? MPWLC की शाखा द्वारा कथित पत्र क्रमांक 211 में सबकुछ ठीक कैसे बताया गया? क्या विभाग स्वयं अपनी ही जांच पर स्वतः मुहर लगा सकता है? फुटेज न होने को आधार बनाकर शिकायत बंद करना, क्या यह गाइडलाइन के विरुद्ध नहीं? फुटेज का संरक्षित रखना वेयरहाउस मैनेजर की अनिवार्य जिम्मेदारी है। फुटेज उपलब्ध न होना भी गंभीर दोष है, इतनी विवादित संस्था एस.के. वेयरहाउस कहानी को धान खरीदी केंद्र क्यों बनाया जा रहा है? क्या कारण है कि, लगातार शिकायतें, किसानों के गंभीर आरोप, जांचों के विरोधाभासी निष्कर्ष, फुटेज गायब, समिति की संदिग्ध भूमिका, MPWLC की अपनी रिपोर्ट और पूर्व की जांचों में उठे सवाल, इन सबके बावजूद इस वेयरहाउस को केंद्र की सूची में बरकरार रखा गया? क्या जिले में और कोई वेयरहाउस नहीं बचा था? या फिर ये वेयरहाउस किसी विशेष संरक्षा में है? यह केवल प्रशासनिक लापरवाही नहीं, यह किसानों के साथ विश्वासघात है, जिस किसान की उपज, उसकी मेहनत, उसका सालभर का पसीना इस तरह से कुछ लोगों की मनमानी और अधिकारियों की चुप्पी में दब जाए, तो यह केवल भ्रष्टाचार नहीं, यह किसान-शोषण है।
शासन को स्पष्ट कानूनी-प्रशासनिक दायित्व..
MPWLC गाइडलाइन, वेयरहाउस में सभी गतिविधियों का वीडियो रिकॉर्ड होना अनिवार्य। रिकॉर्ड गायब-साक्ष्य नष्ट, नागरिक आपूर्ति निगम SOP शिकायत मिलने पर तत्काल स्पॉट जांच, फुटेज, तुलाई रजिस्टर, गुणवत्ता परीक्षण शीट की जांच, दोष पाए जाने पर FIR यहाँ इनमें से कुछ भी नहीं हुआ।
सहकारिता अधिनियम, उपार्जन नीति..
किसी विवादास्पद समिति, वेयरहाउस को अगले सीजन में ब्लैकलिस्ट करना अनिवार्य, लेकिन यहाँ तो उल्टा उसे पुरस्कृत कर केंद्र ही दे दिया गया क्या? जनता पूछ रही है, क्या सिवनी जिले में प्रशासन नाम की कोई संस्था शेष है, या फिर सत्ता का असली संचालन कुछ वेयरहाउस, कुछ प्रभारी और कुछ संरक्षित चेहरों के हाथ में है? यदि एस.के वेयरहाउस कहानी जैसी विवादित और शिकायतों से भरी संस्था ही खरीदी केंद्र बनेगी, तो किसान किसके पास न्याय की उम्मीद लेकर जाए? प्रशासन को सोचना चाहिए, इस तरह की कार्यप्रणाली किसानों के साथ मज़ाक है, और कानून व गाइडलाइन के साथ सीधा विश्वासघात।





