अवैध मिट्टी कांड ग्राम पंचायत नागनदेवरी में पंच-पति की दबंगई के आगे शासन-प्रशासन नतमस्तक..

शासकीय तालाब की खुली लूट, नियमों की किताब को जलाकर ...

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शासकीय तालाब की खुली लूट, नियमों की किताब को जलाकर राख कर दिया गया, क्या ऊँचे अधिकारी जागेंगे?

सिवनी- ग्राम पंचायत नागनदेवरी शासन की नियम-पुस्तिका को यदि किसी ने दिनदहाड़े जलाकर राख किया है, तो वह कुख्यात अवैध मिट्टी कांड ही है, जिसने पूरे क्षेत्र की प्रशासनिक विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्नों की बाढ़ ला दी है। शासकीय तालाब जो ग्रामीणों की जीवनरेखा, वर्षाजल संचयन का आधार, पशुओं के पोषण का सहारा और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण का अनिवार्य हिस्सा माना जाता है, उसे कुछ तथाकथित प्रभावशाली लोगों ने अपने निजी लाभ की भट्टी में झोंक दिया। सबसे चौंकाने वाली बात यह कि ग्राम पंचायत की महिला पंच के पति ने अपनी कथित दबंगई के दम पर 100 से 150 ट्रॉली मिट्टी तालाब से निकलवा दी, वह भी बिना अनुमति, बिना प्रक्रिया, बिना ग्राम पंचायत की बैठक, बिना प्रस्ताव, बिना फाइल मूवमेंट और बिना किसी वैधानिक शक्ति के इस पूरे प्रकरण में शासन के जो भी नियम, अधिनियम, गाइडलाइन या दायित्व लागू होते हैं, उन्हें ऐसे रौंदा गया है जैसे यह प्रदेश नहीं, किसी दबंग का व्यक्तिगत ज़ागीर हो।

ग्राम पंचायत नागनदेवरी में पंच-पति शासन व्यवस्था का उद्घोष?

ग्राम पंचायत में पंच चुनी जाती है, कार्य का अधिकार पंच का होता है, निर्णय पंचायत की सामूहिक राय से लिए जाते हैं। लेकिन नागनदेवरी में जो हुआ, उसने तो इस व्यवस्था का पूरा मखौल उड़ा दिया।

स्थानीय ग्रामीणों की बातों में एक ही वाक्य सबसे अधिक सुनाई देता है, यहाँ पंच नहीं, पंच-पति चलता है..

यही पंच पति तालाब को अपनी निजी संपत्ति समझकर मिट्टी की खुदाई करवाता रहा और पंचायत के वास्तविक पदाधिकारी सरपंच, सचिव, रोजगार सहायक, पंचायत समिति सदस्य इन सबको भनक तक नहीं लगने दी। या यदि लगी भी, तो दबंगई का खौफ इतना बड़ा था कि किसी में इसे रोकने तक का साहस नहीं रहा।

शासकीय तालाब की खुदाई पर स्पष्ट नियम जिन्हें पूरी तरह रौंद दिया गया..

पंचायती राज अधिनियम, मध्य प्रदेश शासकीय भूमि में किसी भी प्रकार की खुदाई/अवांछित उत्खनन के लिए पंचायत की प्रस्तावित बैठक में निर्णय अनिवार्य। कोई प्रस्ताव नहीं, कोई संकल्प नहीं, कोई रजिस्टर्ड निर्णय नहीं, जल संसाधन विभाग एवं ग्रामीण अभियांत्रिकी सेवा के मानक, शासकीय तालाब की खुदाई, तकनीकी स्वीकृति अनिवार्य, भू-अभिलेख विभाग की अनुमति अनिवार्य, ग्राम सभा की स्वीकृति आवश्यक, तलहटी की साइंटिफिक असेसमेंट अनिवार्य, इनमें से कोई एक भी औपचारिक स्वीकृति तक मौजूद नहीं। राजस्व नियम शासकीय तालाब की मिट्टी को बिना अनुमति निकाला जाना सरकारी संपत्ति की चोरी, दंडनीय अपराध और राजस्व क्षति है। पर्यावरणीय नियम जलाशय की संरचना से छेड़छाड़ पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत गंभीर उल्लंघन। मनरेगा/ग्राम पंचायत के संपत्ति अभिलेख नियम तालाब में खुदाई का कोई रिकॉर्ड, माप, प्रविष्टि, कार्य पुस्तिका, फोटो या GPS मापन उपलब्ध नहीं। मतलब, पूरा काम काला, पूरा खेल गैरकानूनी।

अवैध मिट्टी का पूरा रैकेट, स्थानीय ग्रामीणों की ज़बानी..

ग्राम पंचायत नागनदेवरी के ग्रामीणों का कहना स्पष्ट है कि लगभग 100 से 150 ट्रॉली मिट्टी तालाब से दिन-रात पर खुदाई करके उठाई गई, घंटों तक ट्रैक्टर तालाब पर लगा रहा, किसी को रोकने-टोकने की हिम्मत नहीं थी, राजस्व विभाग के अधिकारी की मौन स्वीकृति का राज क्या? ग्रामीणों की एक बुजुर्ग महिला का बयान, हमने रोका, तो बोले-पंच-पति का काम है। तुम्हें क्या दिक्कत? क्या यह लोकतंत्र है या किसी का निजी राज?

जांच टीम पहुँची, लेकिन जांच नहीं पहुँची, रुपये की चढ़ोतरी ने फाइलें दफन कर दीं..

ग्रामीणों के अनुसार घटना की सूचना पर जो जांच टीम भेजी गई, उसमें शामिल थे, आर.आई. (राजस्व निरीक्षक), हल्का पटवारी एवं अन्य सहायक स्टाफ, सूत्रों के अनुसार, अधिकारी पहुंचे, तालाब देखा, ट्रॉली के निशान देखे, विवाद सुना, लेकिन कार्रवाई? शून्य। स्थानीय लोगों का आरोप, जहाँ जांच होनी थी, वहाँ सौदेबाज़ी हुई, जहाँ FIR लिखनी थी, वहाँ नोटों की गड्डियाँ चलीं, अधिकारी लौटे, लेकिन नियम-कानून की मर्यादा वापस नहीं लौटी। इस आरोप की जांच होना तो दूर, इसे दबाने का पूरा प्रयास प्रशासनिक मशीनरी द्वारा किया जा रहा है।

क्या प्रशासन पंच-पति की दबंगई के सामने बौना साबित हो चुका है?

प्रश्न गंभीर है, और उत्तर इससे भी अधिक गंभीर जब 100-150 ट्रॉली शासकीय मिट्टी चोरी हो जाए, तालाब की संरचना नष्ट कर दी जाए, राजस्व हानि करोड़ों में पहुँच जाए, पंचायत को पता न चले, सरपंच-सचिव मौन रहें, जांच टीम कागज़ जेब में रखे बिना कार्रवाई किए लौट आए, तो फिर यह मामला किसी छोटी मोटी लापरवाही का नहीं, बल्कि संस्थागत विफलता और भ्रष्टाचार की संगठित व्यवस्था का है।

प्रशासनिक ईमानदारी के लिए लिटमस टेस्ट..

जांच टीम लौटकर बिना कार्रवाई कैसे चली गई? क्या इतनी बड़ी घटना को अनदेखा करना मुमकिन था? पंच के पति के पास क्या अधिकार था? क्या किसी जनप्रतिनिधि के परिजन को सरकारी तालाब खुदवाने का लाइसेंस मिला हुआ है? 150 ट्रॉली मिट्टी की आवाज जिला प्रशासन तक क्यों नहीं पहुँची? क्या प्रशासन के कान-नाक बंद हैं या ज़मीनी रिपोर्ट दबाई गई? क्या अधिकारियों की मिलीभगत सर्वविदित है? ग्रामीण तो यही कह रहे, कार्रवाई नहीं, समझौता हुआ। अधिकारी नोट लेकर चले गए, क्या उच्च अधिकारियों को इस मामले की फाइलें नहीं दिख रहीं? या फिर जिला स्तर पर ही फाइलें रोक दी गईं?

जिला प्रशासन के लिए खुली चुनौती..

क्या इस मामले का संज्ञान लेकर दोषियों पर गिरेगी गाज? सत्य के साथ खड़े होकर FIR दर्ज करें, पंच-पति और संबंधित वाहनों के मालिकों पर कठोर धारा लगाएँ, जांच टीम के अधिकारियों पर भी विभागीय कार्रवाई करें। फाइल को टेबल दराज में डाल दें, और दबंगई की यह व्यवस्था आने वाले कल में और भी खतरनाक रूप ले ले।

क्योंकि ग्रामीणों में अब यह चर्चा आम हो चुकी है..

यहाँ प्रशासन नहीं चलता, पंच-पति की सरकार चलती है।

शासन की गाइडलाइन की मौत?

शासकीय तालाब का अस्तित्व खतरे में, शासकीय तालाब केवल पानी का गड्ढा नहीं होता यह वर्षा जल संचयन की आधारशिला, भूजल पुनर्भरण का स्रोत, पशुधन संरक्षण का स्थायी आधार, किसानों के खेतों की सिंचाई का सहायक, पर्यावरण संतुलन का महत्वपूर्ण अंग और सबसे बड़ी बात यह सरकार की संपत्ति है, जनता की संपत्ति है? इसकी बर्बादी किसी व्यक्ति/पंच-पति का निजी मामला नहीं, यह सामूहिक अपराध है, जो पूरे क्षेत्र की आने वाली पीढ़ियों को प्रभावित करेगा, क्या सरकार की शून्य सहनशीलता नीति केवल फाइलों में ही है?

मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, कलेक्टर, एसडीएम सभी के दायित्व स्पष्ट हैं..

लेकिन नागनदेवरी में शासन की यह नीति भी पंच-पति के आगे दमित दिखी। क्या सचमुच शासन-प्रशासन जीवित है? यदि तालाब उजड़ जाए, पंचायत को भनक न लगे, पर्यावरण को नुकसान हो, राजस्व चोरी हो जाए, अधिकारी जांच में पैसा खाएँ, ग्रामीण भयभीत रहें, और दबंगई कानून से ऊपर हो जाए, तो फिर प्रशासन की परिभाषा ही क्या बचती है? नागनदेवरी का अवैध मिट्टी कांड केवल पंचायत स्तरीय अनियमितता नहीं, यह शासन व्यवस्था के पतन का दस्तावेज है, यह मामला न सिर्फ तालाब खोदने का है, यह शासन को भीतर तक खोखला कर देने वाले भ्रष्टाचार का साक्षी है। अब गेंद उच्च अधिकारियों के पाले में है या तो यह कांड इतिहास बनेगा, या फिर प्रशासन की निष्क्रियता इतिहास लिखेगी।

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