जनपद पंचायत लखनादौन में सहायक सचिव पर मनमानी के आरोप, सरपंच-सचिव की मिलीभगत भी चर्चा में
सिवनी- जनपद पंचायत लखनादौन की ग्राम पंचायत बाबली एक बार फिर चर्चाओं के केंद्र में है। ग्रामीणों और विभागीय सूत्रों के अनुसार पंचायत में मास्टररोल संचालन को लेकर गम्भीर अनियमितताओं की आशंका लगातार गहराती जा रही है। उपलब्ध दस्तावेजों और लोगों के बयानों से संकेत मिलता है कि सहायक सचिव द्वारा मनमाने ढंग से मास्टररोल तैयार करने का मामला धीरे-धीरे बड़ा रूप ले चुका है।
ग्रामीणों का आरोप, मास्टररोल मशीन की तरह भरा जा रहा है
स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार पंचायत में मजदूरी दिवस, उपस्थिति, कार्य की वास्तविकता, जॉबकार्ड धारकों का चयन इन सभी में पारदर्शिता का अभाव है, ग्रामीणों का कहना है कि मास्टररोल में कई नाम ऐसे हैं जो ग्रामीण स्तर पर कभी काम करते दिखाई नहीं दिए, लेकिन दस्तावेज़ों में उनकी उपस्थिति पूरी तरह नियमित दर्शाई गई है।
नीलेश झारिया और सुकवाल कुशराम के नाम पर सवाल
उपलब्ध मस्टररोल रिपोर्टों में नीलेश झारिया, जो ग्रामीणों के अनुसार ग्राम रहलोन कला में अतिथि शिक्षक हैं, और सुकवाल कुशराम, जिन्हें ग्रामीण जुगराजी छात्रावास में चपरासी बताते हैं, दोनों के नाम पंचायत बाबली के मास्टररोल में लगातार दिखाई दे रहे हैं। ग्रामीणों के अनुसार, काम यहाँ नहीं, मजदूरी वहाँ निकाल ली जाती है, ये कौन-सी पारदर्शिता है? हालाँकि यह सब आरोप और ग्रामीणों की बातें हैं, जिनकी विभागीय जाँच आवश्यक है।
सहायक सचिव पर आरोप, दफ्तर नहीं, मर्जी से पंचायत चल रही
ग्रामीणों के मुताबिक पंचायत में सहायक सचिव ही पूरा मास्टररोल नियंत्रित कर रहा है, और उपस्थिति दर्ज करने से लेकर नाम जोड़ने-हटाने तक सभी कार्य अकेले ही करता दिखता है। आरोप यह भी है कि कई बार मोबाइल-अटेंडेंस, फील्ड-सत्यापन, मनरेगा मानक, भौतिक प्रगति का मिलान कुछ भी पालन में नहीं लिया जाता।
सरपंच-सचिव की भूमिका पर भी सवाल
ग्रामीणों का कहना है कि यह सब कुछ सिर्फ सहायक सचिव की मनमानी से संभव नहीं, बल्कि सरपंच और सचिव की मौन सहमति या मिलीभगत के बिना यह स्तर की अनियमितता संभव ही नहीं है। बाबली पंचायत में फर्जी उपस्थिति, कागज़ी मजदूरी, कागज़ी कार्यदिवस, बैंक भुगतान एंट्री जैसे मुद्दे अब चर्चा का मुख्य विषय बन चुके हैं। मस्टररोल दस्तावेज़ क्या कहते हैं? उपलब्ध रिपोर्टों में यह साफ दिखता है कि एक ही परिवार या समूह के कई लोग लगातार पूर्ण उपस्थिति में दर्ज हैं। कई जॉब कार्ड धारकों की मजदूरी एक ही प्रकार की, एक ही अवधि में दिखाई दे रही है, मोबाइल-अटेंडेंस (मोबाइल से उपस्थिति दर्ज) की पंक्तियाँ पीले रंग में दिखाई दे रही हैं, जिनकी सत्यता की जाँच अपेक्षित है। वास्तविक कार्यस्थल पर ग्रामीणों ने कई दिनों तक कोई मजदूर दिखाई न देने का दावा किया है।
कानून क्या कहता है?
मध्यप्रदेश शासन के मनरेगा दिशा-निर्देश, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग नियम, तथा पारदर्शिता अधिनियम के अनुसार, मास्टररोल में केवल वही व्यक्ति दर्ज हो सकता है, जिसने वास्तविक कार्य किया हो, उपस्थिति की ऑन-द-स्पॉट पुष्टि अनिवार्य है, किसी भी प्रकार की फर्जी उपस्थिति, गलत भुगतान, या जॉब कार्ड का दुरुपयोग गंभीर दंडनीय कृत्य है।
ग्रामीणों की माँग, तत्काल उच्च स्तरीय जाँच हो
ग्राम पंचायत बाबली के कई युवाओं, महिलाओं और मजदूरों ने मांग की है कि मास्टररोल की सम्पूर्ण जाँच हो, मोबाइल-अटेंडेंस की लोकेशन जाँच की जाए, भुगतान किसके खाते में गया, यह सार्वजनिक किया जाए, वास्तविक कार्यस्थल का निरीक्षण कराया जाए, और जिम्मेदारों पर विभागीय कार्रवाई सुनिश्चित हो। ग्रामीणों का कहना है, जो काम जमीन पर दिखाई ही नहीं देता, उसकी मजदूरी कागज पर कैसे निकल रही है? यह जांच का विषय है और जिला प्रशासन को हस्तक्षेप करना चाहिए।
प्रशासन की चुप्पी सवालों के घेरे में
जनपद पंचायत लखनादौन और जिला प्रशासन सिवनी ग्राम पंचायत बाबली की जांच कर पाएगा क्या, परंतु फाइलों में दर्ज उपस्थिति और वास्तविक स्थल की स्थिति के बीच अंतर को देखकर कई सवाल लगातार उठ रहे हैं, ग्राम पंचायत बाबली का यह कथित मास्टररोल मॉडल अब जांच और कार्रवाई की मांग कर रहा है। जब तक प्रशासन इस पर ठोस कदम नहीं उठाता, ग्रामीणों के आरोप और पंचायत व्यवस्था पर अविश्वास दोनों बढ़ते रहेंगे।





