सिवनी- जनपद पंचायत लखनादौन के अंतर्गत आने वाली पाँच पंचायतें, बाबली, थांवरी, धपारा, बिछुआ लोंदा और केवलारी आज वह आईना बन चुकी हैं जिसमें शासन के द्वारा भेजी गई राशि का वास्तविक हाल साफ दिखाई देता है। गाँवों की टूटी सड़कें, धँसी नालियाँ, बुझी गलियाँ, अधूरी नल जल योजनाएँ और मृत पड़ चुके विकास कार्य यह बयान कर देते हैं कि यहाँ काम ज़मीन पर नहीं, बल्कि फाइलों के पन्नों पर जन्म लेते और वहीं दम तोड़ देते हैं, ग्रामीणों का आरोप, गाँव में काम शून्य, पर बिलों में विकास की सुनामी।
कागज़ी विकास का साम्राज्य, गाँव भूखे, फाइलें मोटी
इन पंचायतों में विकास की हकीकत इतनी चुभने वाली है, कि किसी भी अधिकारी का आराम भंग कर दे। ग्रामीणों ने कहा, यहाँ काम शुरू फाइल में होता है और खत्म भी फाइल में। गाँव बीच में कहीं दिखाई ही नहीं देता, सड़क, नाली, पुलिया, स्ट्रीट लाइट, नलजल ओर भी अन्य कार्य ग्राम के हर परियोजना कागज़ के गर्भ में पैदा होती है और कागज़ की कब्र में दफन हो जाती है, पर सवाल वही खड़ा है, जब कोई कार्य धरातल पर हुआ ही नहीं, तो भुगतान क्यों हुए? और यदि भुगतान हुए, तो राशि कहाँ गई?
बाबली पंचायत, सड़कें टूटती रहीं, बिल चमकते रहे, ग्रामीणों के अनुसार बाबली पंचायत में वर्षों से सड़क का कार्य हर बार फाइलों में पूर्ण दर्शाया गया। बिल, मरम्मत रिपोर्ट, सामग्री खरीद सब कागज़ पर मौजूद, लेकिन सड़क? सड़क देखकर लगता है जैसे निर्माण नहीं, तोड़ने का टेंडर हुआ हो।”
थांवरी पंचायत, पानी नहीं, भुगतान बह रहा है, नल जल योजना कागज़ में घर घर पहुँच चुकी है। जमीनी हकीकत? न पाइप, न पानी, न लाइन लेकिन भुगतान? सीधे निकल गए, ग्रामीण का कहना कि पानी नहीं आया, पर पैसे जरूर बह गए।
धपारा पंचायत, विकास गायब, बहाने मौजूद, धपारा में ग्रामीणों का बयान सबसे कड़ा काम पूछो तो कहते हैं फाइल में है, भुगतान पूछो तो कहते हैं सिस्टम में हो गया, ग्रामीणों के अनुसार यहाँ किसी भी विकास कार्य का चिह्न तक नहीं, पर बिलों की रफ्तार देखकर लगता है जैसे यहाँ प्रतिदिन विकास महोत्सव आयोजित होता हो।
बिछुआ लोंदा पंचायत, कागज़ी विकास की फैक्ट्री ग्रामीणों की बात, यह पंचायत योजना आने से पहले ही कागज़ों में मरने की तारीख तय कर देती है, काम कभी शुरू ही नहीं होता, पर कागज़ में तीन तीन बार पूरा दिखाया जाता है?
केवलारी पंचायत, काम नहीं, बिलों की खेती, ग्रामीणों के आरोप सबसे भारी यहाँ हर कार्य पहले बिल बनकर पैदा होता है और फिर खामोशी से मर जाता है, गाँव में न कोई निर्माण, न कोई मरम्मत, न कोई सुधार लेकिन फाइलों में सब कुछ चमचमाता। स्थायी कागज़ी चक्र, बिल उठाओ, जमा करो, भुगतान लो, राशि बाँटो, गाँव भूल जाओ सूत्रों का दावा है कि इन पंचायतों में एक तयशुदा कागज़ी तंत्र सक्रिय है, बाजार से बिल उठाओ (सामग्री आए या न आए, फर्क नहीं), पंचायत में फाइल बनाओ, जनपद में भुगतान निकलवाओ, राशि अलग रास्तों से वापस बाँटो, कागज़ में लिख दो कार्य पूर्ण, गाँव से उठती कटाक्ष भरी आवाज़, कागज़ का पेट भर रहा है, गाँव भूखे पड़े हैं पर क्यों? ग्रामसभा मृत, जनभागीदारी समाप्त, ग्रामीणों के अनुसार पंचायतें कोई भी कार्य शुरू करने से पहले ग्रामसभा या जनसुनवाई की औपचारिकता तक नहीं निभातीं, ग्रामीणों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, हमें नहीं पता कौन-सा काम हुआ, किसका पैसा आया, किसका बिल बना, हमसे पूछा तक नहीं गया।
ग्रामसभा की जगह अब रजिस्टर की स्याही और जाली हस्ताक्षर ने ले ली है
फर्जी बिलों का खेल, न सामग्री, न स्थल, सिर्फ भुगतान सूत्र बताते हैं, कई कार्यों में एक ही सामग्री दो, दो बार दर्शाई गई, कई फर्मों का अस्तित्व ही नहीं, कई बिलों में जाली हस्ताक्षर, कहीं भी मटेरियल डिलीवरी का प्रमाण नहीं, भुगतान की फाइलें एक ही दिन कई-कई कार्यों के नाम से निकल गईं, ग्रामीणों का सवाल, जब नाली बनी ही नहीं, तो उसका बिल कैसे बन गया?
इन ग्राम पंचायतों मे धुरपत, बिलों की राजधानी
पाँचों पंचायतों की चर्चाओं में सबसे अधिक नाम आता है-धुरपत, ग्रामीणों के अनुसार, यहाँ बिलों की प्रोसेसिंग की रफ्तार ऐसी है कि रॉकेट भी शर्म खा जाए, काम हो या न हो, भुगतान जरूर होता है, जनपद अधिकारी मौन क्यों? क्या चुप्पी ही सहमति है? सबसे बड़ा सवाल प्रशासन पर क्या जनपद पंचायत लखनादौन के अधिकारी इन भुगतानों से अनजान हैं? क्या एक बार भी जमीनी निरीक्षण नहीं हुआ? क्या अधिकारी कागज़ ही विकास मान बैठे हैं? क्या शिकायतें आने के बाद भी कार्रवाई न होना मिलीभगत का संकेत है? जनता का प्रश्न सीधा जब भुगतान लाखों के हुए, तो गाँव में विकास की एक ईंट या अन्य सामग्री क्यों नहीं दिखाई देती? जनपद कार्यालय लखनादौन फ़ाइलें चुप, अधिकारी व्यस्त, जनता त्रस्त ग्रामीण कहते हैं, जनपद ऑफिस सिर्फ भुगतान करने की मशीन बन चुका है, निरीक्षण का समय किसी के पास नहीं, शासन की मंशा, हर रुपये का उपयोग जनता के हित में, जमीनी हाल हर रुपये का उपयोग निजी हित में, भ्रष्टाचार की परतें खुल रही हैं, फर्में फर्जी, मूल्यांकन फर्जी, सामग्री फर्जी, सूत्रों की मानें तो कई कार्यों की टेक्निकल स्वीकृति सिर्फ कागज़ में दी गई, कुछ रिपोर्टों में फर्जी फोटो लगाए गए, कई सामग्री की मात्रा बढ़ाकर दिखाई गई, कुछ जगह मूल्यांकन बिना साइट विज़िट के कर दिया गया, प्रशासन की यह चुप्पी अब ग्रामीणों के गले नहीं उतर रही। या विकास दिखाओ, या हिसाब दो, ग्रामीणों का आक्रोश अब चरम पर है। उनकी आवाज़, हमने सब देख लिया, अब या तो विकास करो, या फिर हमें पूरा हिसाब दो।
जिला प्रशासन की अग्निपरीक्षा
क्या कार्रवाई होगी या फिर फाइलें ही बंद होंगी? अब निगाहें टिकी हैं, जिला कलेक्टर सिवनी, जनपद पंचायत लखनादौन सीईओ, जिला पंचायत सिवनी पर यह मामला सिर्फ एक पंचायत का नहीं, यह पूरी प्रशासनिक मशीनरी की साख का प्रश्न बन चुका है, यदि कार्रवाई नहीं हुई तो यही संदेश जाएगा, भ्रष्टाचार को मौन सहमति मिली हुई है, शासन की राशि, पंचायतों की मनमर्जी, इन पंचायतों का मामला बताता है कि जवाबदेही समाप्त, निरीक्षण मृत, जनता गुमराह, फाइलें फूल रही हैं, गाँव सूख रहे हैं, फर्जी बिलों, जाली भुगतान और बेखबर अधिकारियों का यह गठजोड़ लोकतंत्र के लिए कलंक है, ग्रामीणों ने स्पष्ट कहा है, अब जाँच जिला स्तर से हो जल्द..।





