सिवनी- ग्राम पंचायत बाबली एक ऐसा नाम, जो कभी विकास की उम्मीदों के साथ लिया जाता था, आज मनरेगा की लूट, सरकारी धन के दुरुपयोग, मास्टर रोल के खेल, फर्जी मजदूरी, कागज़ी काम, और प्रशासन की खामोश मिलीभगत का प्रतीक बन चुका है। सहायक सचिव देवी लाल उइके, जिनकी भूमिका सेवा और पारदर्शिता के लिए होनी चाहिए थी, आज अपने पद को मनमानी का तमगा समझ बैठे हैं, उनकी कार्यशैली पर एक पुरानी कहावत सटीक बैठती है, अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता, बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया।
क्या देवी लाल उइके किसी संरक्षण के बूते पर खेल रहे हैं यह मनरेगा का खेल?
शासन की करोड़ों की राशि, जो गरीब मजदूरों के पेट के लिए थी, वह खर्च तो दिख रही है, लेकिन खर्च हुआ कहाँ? जमीन पर काम नहीं, मनरेगा जिसका उद्देश्य ग्रामीण मजदूरों को रोजगार और सम्मानजनक मजदूरी उपलब्ध कराना है, वही योजना आज ग्राम पंचायत बाबली में आरोपों के भँवर में फँसी दिखाई दे रही है। ग्रामीणों और उपलब्ध दस्तावेज़ों के आधार पर मास्टररोल संचालन, उपस्थिति सत्यापन, जॉब कार्ड उपयोग, और भुगतान प्रक्रिया को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। शासन की नियमावली के अनुसार यदि आरोप सत्य पाए जाते हैं, तो पूरा मामला स्पष्ट नियम उल्लंघन और वित्तीय अनियमितता की श्रेणी में आ सकता है।
ग्रामीणों का आरोप, मास्टररोल जैसे मशीन से भरा जा रहा हो..
ग्रामीणों के अनुसार, वास्तविक मजदूर कार्यस्थल पर दिखाई नहीं देते, पर मास्टररोल में उपस्थिति पूरी मजदूरी भुगतान नियमित, कई नाम ऐसे, जिन्हें ग्रामीणों ने कभी काम करते नहीं देखा, कई जॉब कार्ड धारकों की मजदूरी कॉपी-पेस्ट पैटर्न में दर्ज, ग्रामीणों का कहना है कि मास्टररोल का संचालन जैसे किसी एक ही मेज से पूरा नियंत्रित हो रहा हो।
दो नामों पर ग्रामीणों के सवाल, नीलेश झारिया और सुकवल कुशराम..
उपलब्ध मास्टररोल प्रतियों में नीलेश झारिया, जिन्हें ग्रामीण ग्राम रहलोन कला में अतिथि शिक्षक बताते हैं..
सुकवाल कुशराम, जिन्हें ग्रामीण जुगरई छात्रावास में चपरासी बताते हैं..
दोनों के नाम पंचायत बाबली के मास्टररोल में लगातार पूर्ण उपस्थिति के साथ दिख रहे हैं..
ग्रामीणों के सवाल, एक व्यक्ति दो जगह प्रतिदिन उपस्थित कैसे हो सकता है? यदि कार्यस्थल पर ये दिखाई नहीं देते, तो उपस्थिति किसने, कैसे दर्ज की? भुगतान किस खाते में गया, और सत्यापन किसने किया? हालाँकि यह ग्रामीणों के आरोप और दस्तावेज़ों में पाए गए पैटर्न हैं, जिनकी आधिकारिक जांच आवश्यक है। सहायक सचिव की भूमिका पर सवाल, क्या पूरा नियंत्रण एक ही व्यक्ति के हाथ में? ग्रामीणों का गंभीर आरोप है कि उपस्थिति दर्ज करना नाम जोड़ना/हटाना मस्टररोल की प्रविष्टियाँ भुगतान हेतु आधार तैयार करने वाले दस्तावेज़ मोबाइल-अटेंडेंस एंट्री ये सभी कार्य एक ही व्यक्ति द्वारा संचालित होते दिखाई देते हैं।
ग्रामीणों का तंज, फील्ड में कम, कागज़ पर ज़्यादा दिखाई देते हैं साहब..
सरपंच-सचिव की भूमिका पर भी संदेह ग्रामीणों का कहना है, इतनी बड़ी स्तर की अनियमितता बिना मौन सहमति के संभव नहीं। उनके अनुसार, निरीक्षण रिपोर्ट नहीं, कार्यस्थल की फोटो नहीं, जियो-टैगिंग अस्पष्ट, उपस्थिति मिलान नहीं, भुगतान से पहले भौतिक सत्यापन नहीं, यह सब प्रशासनिक संरचना पर गहरा सवाल खड़ा करता है।
मध्यप्रदेश शासन के नियम क्या कहते हैं?
मनरेगा दिशा-निर्देश, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग नियम, तथा पारदर्शिता अधिनियम के अनुसार, केवल वही व्यक्ति मास्टररोल में दर्ज हो सकता है, जिसने वास्तविक कार्य किया हो, ऑन-द-स्पॉट उपस्थिति अनिवार्य, मोबाइल आधारित अटेंडेंस अनिवार्य, जियो-टैगिंग आवश्यक, गलत भुगतान, फर्जी उपस्थिति, जॉब कार्ड दुरुपयोग दंडनीय अपराध, यदि आरोप सही पाए गए, तो मामला वित्तीय अनियमितता की श्रेणी में आएगा। ग्रामीणों की खुली माँग, जाँच नहीं, वास्तविक जाँच चाहिए, ग्रामीणों ने स्पष्ट मांगें रखी हैं, मास्टररोल की लाइन-दर-लाइन फील्ड जाँच, मोबाइल-अटेंडेंस की लोकेशन ट्रैकिंग, भुगतान का खाता-स्तर पर सार्वजनिक सत्यापन, कार्यस्थल की वास्तविक फोटो जाँच, जिम्मेदारों पर विभागीय कार्रवाई, उनका कहना है, काम नहीं, मजदूरी कैसे? यह सीधी लूट का मामला है साहब।
प्रशासन की चुप्पी, सवालों से बड़ी कहानी..
जनपद पंचायत लखनादौन और जिला प्रशासन सिवनी इस मामले पर मौन हैं। ग्रामीणों का कहना है, मामला बड़ा है, चुप्पी उससे भी बड़ी जब उपस्थिति संदिग्ध, भुगतान नियमित, कार्यस्थल खाली, और दस्तावेज़ों में चकाचक उपस्थिति, तो प्रशासन की चुप्पी अनायास नहीं लगती, ग्रामीणों का तंज साहब संरक्षण ऊपर से मिलता है, तभी नीचे वाले उछलते हैं।
कागज़ी विकास, जमीन पर सन्नाटा..
दस्तावेज़ों में मिट्टी कार्य, नाला निर्माण, चेकडैम, तालाब गहरीकरण, सफाई कार्य ऐसे अनेकों कार्य सब दर्ज हैं, जमीन पर? ग्रामीण कहते हैं, एक फावड़ा भी नहीं चला, क्या यह केवल पंचायत स्तर का मामला है? ग्रामीणों का दावा है कि बड़े भुगतान, लगातार मस्टररोल एंट्री, नियमित उपस्थिति, बिना निरीक्षण भुगतान ये सब बिना उच्चस्तरीय उदासीनता के संभव नहीं। सवाल यह है, क्या यह लापरवाही है, या संरक्षण?
सबसे बड़ा सवाल, क्या बाबली में बन रहा है मास्टररोल मॉडल?
यदि आरोप सत्य पाए गए, तो मामला, फर्जी उपस्थिति, गलत भुगतान, कार्यस्थल की जाँच न होना, एक ही व्यक्ति द्वारा सभी दस्तावेज़ तैयार करना, मजदूरों के खातों में असामान्य प्रविष्टियाँ जैसे गंभीर बिंदुओं तक पहुँचता है, अब उच्च स्तरीय जाँच अनिवार्य, मनरेगा का उद्देश्य गरीब मजदूरों तक राहत पहुंचाना था, न कि कागज़ी विकास का महल खड़ा करना, ग्राम पंचायत बाबली का मामला, ग्रामीणों का बढ़ता रोष, दस्तावेज़ों में पाए गए पैटर्न, प्रशासन की चुप्पी और मस्टररोल में देखी गई विसंगतियाँ, इन सबके आधार पर अब कड़ी, पारदर्शी, और त्वरित जाँच की मांग कर रहा है। ग्रामीणों का एक ही वाक्य सब कह देता है, कागज़ पर विकास, जमीन पर विनाश अब यह बंद होना चाहिए। जनपद पंचायत लखनादौन को अब चुप्पी छोड़कर कार्रवाई करनी होगी।
क्योंकि, जब सरकारी राशि लूट की थाली बन जाए, जब अधिकारी जनता की आँखों में धूल झोंकें, और जब पंचायत विकास के नाम पर कागज़ी महल खड़ा करे, तो जांच केवल जरूरी नहीं, अनिवार्य हो जाती है।





