21 नवम्बर 2025, शाखा प्रबंधक धनौरा का पत्र क्रमांक 211, जिम्मेदारी किसकी?, धनौरा खरीदी केंद्र की कहानी, क्या प्रशासन ने आंखें बंद कर ली हैं?

क्या जिला प्रशासन कुम्भकरणीय निद्रा में है, या फिर आंखें ...

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क्या जिला प्रशासन कुम्भकरणीय निद्रा में है, या फिर आंखें खोलने में किसी रुपैया-प्रभाव का भार है?

एस.के. वेयरहाउस कहानी में 13 अप्रैल की शाम का सच कैमरों में कैद पर कुर्सियों पर बैठे अधिकारी अब भी खामोश..

सिवनी- किसानों की कड़ी मेहनत और महीनों की उम्मीदों का परिणाम जब खरीदी केंद्र पर पहुंचता है, तब उम्मीद यह रहती है कि शासन के नियम, निरीक्षण की प्रक्रिया, और गुणवत्ता परीक्षण की पारदर्शिता उसके साथ न्याय करेगी। लेकिन धनौरा स्थित एस.के. वेयरहाउस कहानी में जो दृश्य सामने आए, उन्होंने किसानों के आक्रोश को लपटों में बदल दिया है। सवाल उठ रहा है, क्या जिला प्रशासन कुम्भकरणीय निद्रा में है, या फिर आंखें खोलने में किसी रुपैया-प्रभाव का भार है?

समिति को संचालन क्यों, किसके आदेश पर और किस योग्यता के आधार पर?

केंद्र के संचालन को लेकर सबसे पहला और बड़ा प्रश्न यही है कि एस.के. वेयरहाउस कहानी में खरीदी का संचालन एक समिति को क्यों सौंपा गया? क्या समिति की योग्यता की जांच हुई? क्या समिति के सर्वेयर नियम अनुसार तकनीकी दक्ष थे? क्या नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी थी? जिला प्रशासन ने किस धारा, किस आदेश, और किस तर्क पर यह जिम्मेदारी हस्तांतरित की? यह वे सवाल हैं जिनके जवाब न तो मंच पर मिले, न मीटिंग में, न कार्यालयी कागज़ों में किसानों का सीधा आरोप, कहानी समिति को दिया गया अधिकार, कहानी से ज्यादा रहस्यमय है।

13 अप्रैल 2025, शाम 4:00 से 5:30 जिसे कैमरे ने कैद किया, वह प्रशासन ने अब तक क्यों नहीं देखा?

किसानों और शिकायतकर्ताओं का कहना है कि उस दिन केंद्र पर प्रबंधक, खरीदी प्रभारी की पूर्ण लापरवाही, सर्वेयरों की मनमानी, किसानों की उपज को उठाकर इधर-उधर फेंकना, गुणवत्ता परीक्षण को बिना वैज्ञानिक प्रक्रिया के करना, और किसानों को घंटों लाइन में खड़ा रखना सबकुछ सीसीटीवी कैमरों में रिकॉर्ड है, पर क्या जिला प्रशासन ने फुटेज देखा? यदि नहीं, तो क्यों नहीं? और यदि देखा, तो कार्रवाई कहाँ है? यह प्रश्न अब प्रशासन की विश्वसनीयता की नींव हिला रहे हैं, किसानों का आरोप यह परीक्षण नहीं, चलता है, हो जाएगा, लिख दो वाली प्रक्रिया है, गुणवत्ता परीक्षण पर किसानों का बयान सबसे तीखा है, गेहूं की दाना-दाना मेहनत से भरी थी, पर परीक्षण करने वालों के  हाथों में बस ढिलाई थी। यह गुणवत्ता परीक्षण नहीं, सब होम, धूप, सोहा शैली थी, यानी, ना नमी मापी, ना वजन का समान अनुपात देखा, ना विदेशी पदार्थ की माप, ना नमूना संग्रह, ना रिकॉर्डिंग बस जैसे-तैसे काम निपटाया गया।

किसानों की पीड़ा साफ झलकती है, केंद्र के कर्मचारी मौज में, और किसान दंश झेलते रहें, यह कैसा शासन?

21 नवम्बर 2025, शाखा प्रबंधक धनौरा का पत्र क्रमांक 211-जिम्मेदारी किसकी? प्रबंधक ने अपने पत्र में कहा कि खरीदी समिति द्वारा की गई, गुणवत्ता परीक्षण समिति व सर्वेयर द्वारा,NAAN की स्वीकृति पर WHR जारी हुए, और गुणवत्ता संबंधी शिकायत उनकी जानकारी में नहीं है, अर्थात वेयरहाउस कहता है, हम नहीं जिम्मेदार, समिति कहती है, हमने तो किया, NAAN कहता है, हमने स्वीकृति दी, पर किसान पूछते हैं, तो फिर गलत कौन है? और सच दबाया कौन जा रहा है? आखिर यह जवाबों का गुमटी-टालू खेल कब तक चलेगा? खरीदी केंद्र की स्थिति, मनमानी, मिलीभगत और मूक प्रशासन, क्या यही विकास है? किसानों का आरोप है कि खरीदी शुरू होने के दिन से ही नियमों का पालन नहीं हुआ, गेहूं की गुणवत्ता को लेकर लापरवाही की गई, उपज का वजन सही तरीके से दर्ज नहीं हुआ, कई किसानों की बोरी खुलवाई ही नहीं गई, कई के साथ भेदभाव हुआ, सर्वेयरों और प्रभारी के बीच मिलीभगत दिखी, किसानों का दर्द, हमारा अनाज पसीना पीकर उगा है, पर खरीदी केंद्र पर वह बेरुखी पीता है।

काले कारनामे और प्रशासन चुप क्यों?

यदि वास्तव में कोई अनियमितता नहीं हुई, तो सीसीटीवी फुटेज सार्वजनिक क्यों नहीं किया जाता? निरीक्षण टीम को मौके पर क्यों नहीं भेजा गया? समिति की पात्रता पर जांच क्यों नहीं? जिलाधीश और उपज मंडी अधिकारियों ने मौन क्यों ओढ़ लिया? इन सभी क्यों के पीछे कहीं न कहीं प्रशासन की चुप्पी खटकती है। किसानों की भाषा में कहें तो, यह चुप्पी साधारण नहीं, यह चुप्पी संदिग्ध है। किसानों की मांग थी कि सीसीटीवी फुटेज की जांच, खरीदी प्रभारी, सर्वेयर पर फिर, समिति और वेयरहाउस की ब्लैकलिस्टिंग, संपूर्ण खरीदी प्रक्रिया की प्रशासनिक जांच, शिकायतकर्ताओं की मांग बेहद स्पष्ट थी कि 13 अप्रैल की फुटेज देखकर तत्काल FIR, समिति पर जांच बैठाई जाए, एस.के. वेयरहाउस कहानी को ब्लैकलिस्ट किया जाए, गुणवत्ता परीक्षण प्रक्रिया को पुनः सत्यापित किया जाए।

किसानों का कहना…..

हम न्याय नहीं, न्याय की शुरुआत चाहते है, समय सबसे बड़ा है, महोदय, इस पूरी कहानी में एक बात सबसे अधिक चुभती है, किसानों की आवाज़ धीमी है, पर उनकी सच्चाई ऊँची, और समय सबसे ऊँचा, जो आज नहीं सुना जाएगा, वह कल किसी बड़े मंच पर गूंजेगा।

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